1 तीमुथियुस 6:3 से 10 तक अर्थ क्या हैं ? Step-by-step
नमस्कार जय मसीह की
1 तीमुथियुस 6:3 से 10 तक अर्थ क्या हैं ? Step-by-step
यदि कोई और ही प्रकार का उपदेश देता है; और खरी बातों को, अर्थात हमारे प्रभु यीशु मसीह की बातों को और उस उपदेश को नहीं मानता, जो भक्ति के अनुसार है।
1 तीमुथियुस 6:3
तो वह अभिमानी हो गया, और कुछ नहीं जानता, वरन उसे विवाद और शब्दों पर तर्क करने का रोग है, जिन से डाह, और झगड़े, और निन्दा की बातें, और बुरे बुरे सन्देह।
1 तीमुथियुस 6:4
और उन मनुष्यों में व्यर्थ रगड़े झगड़े उत्पन्न होते हैं, जिन की बुद्धि बिगड़ गई है और वे सत्य से विहीन हो गए हैं, जो समझते हैं कि भक्ति कमाई का द्वार है।
1 तीमुथियुस 6:5
पर सन्तोष सहित भक्ति बड़ी कमाई है।
1 तीमुथियुस 6:6
क्योंकि न हम जगत में कुछ लाए हैं और न कुछ ले जा सकते हैं।
1 तीमुथियुस 6:7
और यदि हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर सन्तोष करना चाहिए।
1 तीमुथियुस 6:8
पर जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं, जो मनुष्यों को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डूबा देती हैं।
1 तीमुथियुस 6:9
क्योंकि रूपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्वास से भटक कर अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है॥
1 तीमुथियुस 6:10
इसका अर्थ ये होता है शैतान के द्वारा लोगो को झूठी शिक्षा देना और लोभ प्रलोभन देकर लोगो परमेश्वर के वचन से दूर करना इसका मीनिंग यही होता है ।
Ameen jay maseh ki God bless you

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